उन परिवारों के बारे में हम सोच भी नहीं पाते हैं जो हर दिन मजदूरी करते हैं और जो पैसे उन्हें मिलते हैं, उसी से अपना घर चलाते हैं।
ऐसे परिवारों के सामने इस तरह की आपदाओं के चलते बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है और वह समस्या होती है पेट भरने की। आज ऐसे ही एक परिवार को देखा जिनको 10-12 घंटे से कुछ खाने को नहीं मिला था।
आज दोपहर किसी स्वयंसेवी संस्था ने उन्हें खाने का पैकेट दिया। पैकेट लेने से पहले भी उनके चेहरे के भाव दुख वाले नहीं थे और पैकेट लेने के बाद तो उन्होंने मुस्कुराकर ईश्वर के प्रति और पैकेट देने वाले के प्रति कृतज्ञता जाहिर की।
वास्तव में सही सुख यही है जब व्यक्ति खुश रहे जो उन लोगों मे देखने को मिली। हमारे यहां एक कहावत है: -
"संतोष एव पुरुषस्य परम निधानम"
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