बुद्ध जयंती पर अंबेडकर विश्वविद्यालय महू में हुआ महात्मा बुद्ध पर वेबिनार

आत्मानुशासन का स्तर जितना गंभीर होगा वह मनुष्य उतना ही समृद्ध और सुखी होगा-प्रो. आशा शुक्ला
07 मई, 2020 डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू इंदौर द्वारा लॉर्ड बुद्धा चेयर के अंतर्गत भगवान गौतम बुद्ध की जयंती के अवसर पर समकालीन परिप्रेक्ष्य: बौद्ध दर्शन की भूमिका एवं महत्व विषय पर ऑनलाइन राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन किया गया। इससे पूर्व सुबह कुलपति महोदया द्वारा भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर मोमबत्ती प्रज्ज्वलित करते पुष्पांजलि अर्पित की गयी। इस राष्ट्रीय परिसंवाद में देशभर के अलग-अलग विश्वविद्यालयों के 80विद्यार्थियों-शोधार्थियों ने वैचारिक सहभागिता की। कार्यक्रम की अध्यक्षता ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने की एवं कार्यक्रम के उपाध्यक्ष प्रो. डी. के. वर्मा रहे। मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. सत्येंद्र किशोर मिश्रा, विक्रम विवि उज्जैन से, वक्ता के रूप में डॉ. सुरजीत कुमार सिंह, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विवि. वर्धा, डॉ. एस. एल. निर्मल शासकीय पीजी. कॉलेज पीथमपुर, डॉ. राघवेंद्र हुणमाडे देवी अहिल्या विवि इंदौर, डॉ. आनंद हिंडोलिया मुंबई वि वि, श्री  रामस्वरूप भारती गुना, डाँ हिमानी उपाध्याय जबलपुर से शामिल हुए। कार्यकम संयोजक डॉ. कौशलेन्द्र वर्मा ने परिसंवाद एवं अतिथि परिचय दिया। प्रो. डी. के. वर्मा ने प्रस्तावना एवं स्वागत वक्तव्य देते हुए बुद्ध के आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग को केंद्र में रखते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई। प्रो. वर्मा ने कोविड 19 के आलोक में भी बुद्ध के दर्शन के सिद्धांतों की प्रासंगिकता को रखा। डॉ. सुरजीत सिंह ने भगवान बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति की साधना को वर्णन करते हुए बताया कि तथागत बुद्ध दुख के कारण को कोई पारलौकिक तत्व नहीं मानते थे। उन्होंने कहा कि बुद्ध दुखवादी नहीं थे बल्कि उन्होंने दुख निवारण के आर्य सत्यों के बारे में बताया। डॉ. एस. एल. निर्मल ने अपने वकतव्य में बुद्ध को दार्शनिक से कहीं अधिक एक शिक्षक के रूप में देखने की बात कही। डॉ. राघवेंद्र हुणमाडे ने अपने वक्तव्य में भगवान बुद्ध की सर्वकालिकता का वर्णन किया। डॉ. आनंद हिंडोलिया ने विपस्यना को केंद्र में रखकर बात कही। मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए प्रो .सत्येंद्र मिश्र ने बुद्ध दर्शन को एक जीवन पद्धति बताया। उन्होंने कहा कि बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय में विश्वास करने वाले तथागत ने मानव कल्याण के लिए मध्यमार्ग का अनुसरण किया। ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अध्यक्षीय उद्बोधन के शुरुआत में सभी को बुद्ध पुर्णिमा की बधाई देते हुये शुरु की। प्रो. शुक्ला ने वैश्विक महामारी के दौर में बुद्ध का स्मरण करते हुए विश्वशान्ति की कामना की।  आदर्शवादी एवं भौतिकवादी विचार परम्पराओं की व्यापकता पर बात करते हुए कहा कि जिसके आत्मानुशासन का स्तर जितना गंभीर होगा वह मनुष्य उतना ही समृद्ध और सुखी होगा। डॉ. मनीषा सक्सेना सहित ब्राउस के संकाय सदस्यों ने इसमें सहभागिता की। राष्ट्रीय परिसंवाद का संचालन डॉ. भरत भाटी ने और धन्यवाद ज्ञापन डीन प्रो. किशोर जॉन ने दिया।



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