अखिल भारतीय साहित्य परिषद, महू इकाई का ऑनलाइन कवि सम्मेलन हुआ संपन्न

अखिल भारतीय साहित्य परिषद, महू इकाई द्वारा ऑन लाईन लाईव द्वारा शानदार कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।


 


 आयोजन की अध्यक्षता कर रहे अ.भा. साहित्य परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष  त्रिपुरारी लाल शर्मा ने कार्यक्रम का शुभांरभ मां सरस्वती पर पुष्प व दीप प्रज्वलित कर किया। त्रिपुरारी लाल शर्मा  ने अपने उद्बोधन में महू इकाई को इस आयोजन पर बधाई दी।


 


कवि सम्मेलन का सुंदर संचालन कवि  शिक्षाविद धीरेन्द्र कुमार जोशी ने  किया। सरस्वती वंदना  बिंदु के पंचोली ने अपनी मधुर आवाज में प्रस्तुत की।


 


कवियों ने देशभक्ति, बेटी बचाओ, पर्यावरण, कोरोना महामारी एवं समसामयिक बिषयों पर सुंदर रचनाएं प्रस्तुत की।


काव्य धारा के प्रवाह में पद्य प्रस्तुतियां कवियों की इस प्रकार रही:-


 


त्रिपुरारी लाल शर्मा जी ने सैनिकों के प्रति समर्पित रचना में -


 


अभिनंदन-अभिनंदन वीर सैनिको का अभिनंदन भारत माँ के तुम हो नंदन      शौर्याग्नि से निकले कुंदन सुनाई। क्रम में संचालन कर रहे  धीरेन्द्र कुमार जोशी जी द्वारा मां की ममता का जीवंत चित्र प्रस्तुत करते हुये - तेरे आंचल सा छोर नहीं, मैं दुनिया घूम के आया मां । 


 


विनोद सिंह गुर्जर  द्वारा महामारी दृश्य पर अपनी प्रसिद्ध काव्य कृति सुनाई -


 


प्यासे हैँ नैनों के सपने।


 


दूर हुये हैं हमसे अपने।


 


किसने ये सब खेल रचा है।


 


धरती पर श्मशान बसा है।। 


 


पवन मकवाना जी द्वारा मौसम के मिजाज पर तंज कसते हुये अपनी व्यंगात्मक शैली में प्रस्तुति दी-


 


यूंही न चले आया करो मौसम,


 


ऐसे उनकी याद न दिलाया करो मौसम।


 


बिंदु के पंचोली ने संतों पर हो रहे जानलेवा हमलों पर अपनी भावाव्यक्ती अपने बेहद सुंदर अंदाज में प्रस्तुति दी-


 


क्या भारत में सन्तों को और संस्कृति को यूँ मरना होगा।


 


पायल परदेशी ने हास्य  रचना का अपने चुटीले अंदाज में रचना पाठ किया। -बिना हेलमेट कवि 


 


दीपक जैसवानी द्वारा मजदूर व्यथा का चित्रण करते हुये रचना पाठ किया -


 


  मजदुर हूँ , मजबूर नही ।


 


  इसमें मेरा कसूर नही ।।


 


गगन खरे क्षितिज द्वारा ऊषाकाल का सुंदर वर्णन अपनी कविता द्वारा प्रस्तुत किया -अब तो जागो सुन्दर सुमन खिले भोर के आंगन में एक मीठी सी मुस्कान लिए उषा की किरण और समेटे सभी के दुःख दर्द सृष्टि ने अपने धरातल पर।


 


राजेश कुमार पाटीदार ने केरल के जघन्य पैशाचिक अपराध हाथी को विस्फोटक सामग्री खिलाये जाने पर अपनी रचना में आक्रोश भरते हुये संदेश दिया- 


 


इस नर पिशाच इंसान ने क्या अनर्थ कर दिया।


 


कवि विजय पाण्डेय 'जीत'  द्वारा मां से दूर हो ममता की कमी पर बेटे की अधीरता का सुंदर वर्णन अपनी रचना द्वारा प्रस्तुत किया-


 


  माँ दिल घबराता हैं मेरा,


 


  क्या पास तेरे मैं आ जाऊ।


 


  गोद में तेरे सर रखकर ,


 


  कुछ पल चैन से सो जाऊ।


 


अंत में बेटी देवांशी  द्वारा मेरे ललाट पर लगी बिंदिया सुनाकर नारी शक्ति का अपने सृजनात्मक पद्य द्वारा सुंदर प्रस्तुति दी।


 


अंत में क्रमशः आयोजन के बारे में सभी कवियों ने अपने विचार रखे एवम् कवियों का आभार प्रदर्शन उपाध्यक्ष श्री विनोद सिंह गुर्जर ने सभी के स्वास्थय की मंगल कामना करते हुये कहा कि हर हाल में हमारी कलम ना रुकी है ना रुकेगी।


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