अंबेडकर विश्वविद्यालय ने किया महिला सुरक्षा और बाल अपराध पर वेबीनार का आयोजन

 महिला और बाल सुरक्षा हमारी साझा जिम्मेदारी-प्रो. आशा शुक्ला

कोरोना वैश्विक महामारी और स्वास्थ्य संकट के इस दौर में महिला और बाल सुरक्षा का विषय भी बहुत जरूरी है- श्रीमती भामती बालासुब्रह्मण्यम

29/04/21 ब्राउस। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू के महिला अध्ययन विभाग, सावित्री बाई फुले पीठ एवं इंटरनल कंपलेंट कमिटी, जेंडर संवेदनशीलता समिति के संयुक्त तत्वावधान में महिला एवं बाल सुरक्षा विषय पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। यूजीसी, नई दिल्ली द्वारा महिला और बाल सुरक्षा संबंधी अकादमिक चिंतन और बचावकारी सुझावों को केंद्र में रखकर आयोजित इस वेबिनार में मुख्य अतिथि के रूप में चेन्नई से श्रीमती भामती बालासुब्रह्मण्यम पूर्व आई. ए. एस एवं जेंडर एक्सपर्ट, विशिष्ट अतिथि के रूप में आई. जी. क्राइम अगेन्स्ट वीमेन मध्य प्रदेश, दीपिका सूरी और वक्ता के रूप में दिल्ली विश्वविद्यालय से डॉ. सैयद मुबीन ज़ेहरा तथा ए.एस.पी. खंडवा मध्य प्रदेश सीमा अलावा रहीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने की।

 कोरोना वैश्विक महामारी और स्वास्थ्य संकट के इस दौर में महिला और बाल सुरक्षा का विषय भी बहुत जरूरी और समीचीन है। स्वास्थ्य संकट का असर महिलाओं और बच्चों पर कई रूपों में पड़ा हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो सहित अन्य एजेंसियों द्वारा जारी आंकड़ों का जिक्र करते हुए मुख्य अतिथि उद्बोधन में उन्होंने यह बात कही। घरेलू हिंसा और बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले भी घरों के दायरे में दर्ज हो रहे हैं। रोजगार जाने और अन्य तरह के फ्रश्टेशन का प्रतिकार अधिकतर महिलाओं पर हिंसा के रूप में सामने आ रही है जिसका त्वरित समाधान और न्याय नहीं हो पा रहा है। राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के आधार पर बताया कि वुमेन हेल्प डेस्क पर 75% से अधिक कॉल घरेलू हिंसा के और चाइल्ड लाइन डेस्क पर 80 प्रतिशत के कॉल यौन दुर्व्यवहार संबंधी आए हैं। उन्होंने साइबर क्राइम, बाल विवाह और ट्राफिकिंग का जिक्र भी महिला और बाल सुरक्षा की दृष्टि से देखे जाने को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने बताया कि महिला एवं बाल सुरक्षा का सवाल हमेशा ही चिंता का विषय रहा है लेकिन इस लॉकडाउन वाली स्थिति और महामारी के बीच सुरक्षा के साझा प्रयास अधिक जागरुकता और सतर्कता के साथ किए जाने की आवश्यकता है जिसमें हमें सामाजिक स्तर पर भी देखना होगा।

विशिष्ट अतीति उद्बोधन देते हुए दीपिका सूरी जी ने महिला एवं बाल सुरक्षा की साझा जिम्मेदारियों का जिक्र करते हुए पुलिस और प्रशासन की भूमिका को अहम बताया। महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ हिंसा को देखने का सामाजिक नजरिया आम तौर पर पितृसत्तामाक तरीके का होता है लेकिन पुलिस और अन्य जिम्मेदार इकाइयों को इस पर कार्य करते हुए बेहद संवेदनशील होने की जरूरत है। बलात्कार अथवा हिंसा की घटनाओं को जब हम पीड़ित द्वारा उसके विरोध किए जाने की श्रेणी में रखकर देखने लगते हैं वहाँ न्याय और निष्पक्ष पड़ताल की गुंजाइश सीमित हो जाती है। उन्होंने कहा कि हमें सार्वजनिक स्थानों पर हो रही छेड़-छाड़ को रोकने के लिए एक उपाय यह भी करना चाहिए कि हम दखल करें। जब तक हम महिला और बाल सुरक्षा का मामला सिर्फ महिलाओं और बच्चों का विषय समझते रहेंगे तो न्याय कमजोर पड़ेगा। दरअसल यह सामाजिक ज़िम्मेदारी और सामाजिक हिंसा का एक स्वरूप हैं। उन्होंने पॉस्को एक्ट और बाल अपराधों पर भी विस्तार से बताने के साथ मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा महिला एवं बाल सुरक्षा के लिए किए जा रहे प्रयासों पर भी विस्तार से बात की।

डॉ. सैयद मुबीन ज़ेहरा ने महिला एवं बाल सुरक्षा पर बात रखते हुए सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, स्वास्थ्य एवं न्यूट्रीशन संबंधी मुद्दों को भी सामने रखा। उन्होंने अफ्रीका, एशिया और यूरोपीय देशों में महिला सुरक्षा और महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा के आंकड़ों को सामने रखते हुए भारतीय संदर्भ में महिला सुरक्षा और बाल सुरक्षा संबंधी तथ्यों को रखते हुए जेंडर संवेदनशीलता तथा कानूनी संबद्धता की बात कही। उन्होंने चुनौतियों को स्वीकारने की बात करते हुए कहा कि यदि महिला एवं बाल सुरक्षा के मामले में चुनौतियों को स्वीकारने की पहल करेंगे तो इसका मतलब हम सुरक्षा संबंधी उपायों को और मजबूत करने की पूरजोर कोशिश का हिस्सा बनेगे।

अतिथि वक्ता सीमा अलावा ने अपने उद्बोधन में महिला एवं बाल सुरक्षा जमीनी स्थितियों को बताते हुए सोशल मीडिया तथा इंटरनेट के जरिये महिलाओं तथा बच्चों को आसानी से शिकार बनाए जाने की घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने पुलिस की संवेदनशील भूमिका के साथ-साथ परिवार और समुदाय की भूमिका को महिला सुरक्षा एवं बाल सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण बताया।

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रो. आशा शुक्ला, कुलपति ब्राउस ने वैश्विक महामारी के इस दौर में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा और उनके भीतर असुरक्षा बोध का जिक्र करते हुए कहा कि यह वेबीनार महिला और बाल सुरक्षा संबंधी कानूनी, सामाजिक, अकादमिक एवं प्रशासनिक स्तर की साझा दृष्टियों से महिला और बाल सुरक्षा के लिए बेहतर तरीकों और उपायों को लेकर आयोजित किया गया। जो बहुत सार्थक साबित हुआ है। उन्होंने समुदाय मानसिकता से आगे बढ़कर समाज मानसिकता से इन मुद्दों पर कार्य करने की बात कही। आगे कहा इस वैश्विक महमारी के दौर में हमारे सामने कई चुनौतियाँ हैं। महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा की चिंता भी बढ़ी है। आंकड़े यह दर्शाते हैं कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अलग-अलग तरह की हिंसा की घटनाएँ बढ़ी हैं। इन्टरनेट और ऑनलाइन माध्यमों पर निर्भरता के बढ़ते संदर्भों में साइबर क्राइम और धोखाधड़ी से बच्चों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पैरेंट्स और परिवार को उनकी काउन्सलिन्ग करने के साथ-साथ ध्यान रखने की जिम्मेदारी भी बढ़ी है। उन्होंने कहा कि इस महत्वपूर्ण चर्चा से कई कारगर सुझाव और अनुसंधान के बिन्दु भी उभर कर आए हैं जिस पर हम सभी को कार्य करने की जरूरत है। उन्होंने कहा महिला और बाल सुरक्षा हमारी साझा जिम्मेदारी है।

प्रस्तवाना एवं अतिथि परिचय कार्यक्रम समन्वयक डॉ. मनोज गुप्ता ने दिया तथा समापन एवं धन्यवाद वक्तव्य प्रो. डी. के. वर्मा, डीन समाजविज्ञान अध्ययनशाला ने दिया।










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