‘शिक्षा नीति में मनोविज्ञान के शिक्षकों की प्रभावी भूमिका-प्रो. मिश्र
महू (इंदौर). ‘शिक्षा नीति-2020 के पूरे प्रारूप में मनोविज्ञान विषय के शिक्षकों की प्रभावी भूमिका रेखांकित की गई है. शिक्षा पद्धति, मूल्यांकन और शिक्षा तथा विद्यार्थियों के संबंध में जो नई संकल्पना प्रस्तुत की गई है, उसे कार्य व्यवहार में लाने के लिए मनोविज्ञान शिक्षकों की अहम भूमिका है.’ यह बात महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरिश्वर मिश्र ने डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय (ब्राउस)के शिक्षा अध्ययन शाला एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्ववाधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में कही. प्रोफेसर मिश्र का कहना था कि शिक्षा की रूपरेखा बदल गई है. अब नए तरीके से माइंडसेट करने की जरूरत शिक्षकों, विद्यार्थियों और पालकों को करने की जरूरत है. प्रोफेसर मिश्र का सुझाव था कि मनोविज्ञान के शिक्षकों को भी इस नई संकल्पना में प्रशिक्षण की आवश्यकता है. विद्यार्थी की रचनात्मकता और उसकी रूचि के अनुरूप अब शिक्षा देने की जो व्यवस्था की जा रही है, उसमें मनोविज्ञान के शिक्षकों की भूमिका बड़ी और गंभीर होगी क्योंकि यह मनोविज्ञान का कौशल है कि वह दिशा तय कर सके और परामर्श दे सके. शिक्षा ऐसी हो जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास करे.वेबीनार के आरंभ में स्कूल ऑफ एजुकेशन, सेंट्रल यूर्निवसिटी, हिमाचल प्रदेश, धर्मशाला के अधिष्ठाता प्रोफेसर विशाल सूद ने शिक्षा नीति में मनोविज्ञान शिक्षकों की भूमिका का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी अब मनोविज्ञान शिक्षकों पर है. उन्होंने कहा कि मनोविज्ञान शिक्षकों की योग्यता होती है कि वह विद्यार्थियों की ऊर्जा और रचनात्मकता की पहचान कर सके. अब उन्हें यह जवाबदारी और गंभीरता से पूर्ण करना होगी. प्रोफेसर सूद ने भारतीय ज्ञान परम्परा का उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा नीति 2020 ने विद्यार्थियों के कौशल को पहचान कर उन्हें शिक्षा का खुला आकाश उपलब्ध कराया है. एमिटी यूर्निवसिटी, गुरुग्राम हरियाणा में क्लिनिकल सॉयकोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. विकास शर्मा ने कहा कि शिक्षा नीति में अब संवेदनशीलता को स्थान दिया गया है जिसकी समझ मनोविज्ञान शिक्षकों में होती है. उन्होंने आउटकम की बात करते हुए कहा कि विद्यार्थी जो क्लास रूम में पढ़ रहा है, वह कितना सीख और समझ रहा है, इसका आंकलन मनोविज्ञान शिक्षक ही कर पाएंगे. समस्या को समझना और उसका विवेचन करने का कौशल मनोविज्ञान शिक्षकों के पास होता है. उन्होंने छोटे बच्चों की शिक्षा पर कार्य करने और योजना बनाने का सुझाव दिया.
दिल्ली यूर्निवसिटी में मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर आनंदप्रकाश ने कहा कि मनोविज्ञान के शिक्षक नई शिक्षा नीति के अनुरूप ढाल सकते हैं. चुनौती के साथ संभावना की पहचान की योग्यता मनोविज्ञान के शिक्षकों में होती है. उन्होंने तीन बिंदुओं का उल्लेख करते हुए अपनी बात रखी जिसमें पहला यह कि मनोविज्ञान के शिक्षकों में व्यक्ति को विस्तार देना तथा संभावना तलाश करना, दूसरा समाज के साथ सरोकार स्थापित करना, तीसरा मानव सभ्यता के सृजन में योगदान करना. प्रो. आनंदप्रकाश का कहना था कि शिक्षा संभावनाओंं का विस्तार है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां मनोविज्ञान के शिक्षित लोगों की जरूरत 10 हजार है जबकि हम केवल हजार से ज्यादा शिक्षित नहीं कर पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि ब्राउस इस दिशा में रोल मॉडल बन सकता है. बरकतउल्लाह विश्वविद्याल में मनोविज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर दिनेश नागर ने अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा कि दुनिया के अन्य देशों के विश्वविद्यालय में अन्य विषयों के विभागों में मनोवैज्ञानिकों को रखा जाता है. अब यह प्रक्रिया शिक्षानीति-2020 में भी हो पाएगी. उन्होंने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए मनोविज्ञान के शिक्षकों की आवश्यकता होगी और इसके बिना हम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे.
कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने कहा मन को आंकलन करने का कार्य मनोविज्ञान विषय के शिक्षक ही कर सकते हैं. शिक्षा नीति 2020 का उल्लेख करते हुए कहा कि यह शिक्षा बहुआयामी है. इसलिए अब मनोविज्ञान के शिक्षकों की भूमिका और बढ़ गई है. उन्होंने कोरोना काल में किए गए अध्ययन का हवाला भी दिया. शिक्षा अध्ययन शाला (ब्राउस) की अधिष्ठाता एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ. मनीषा सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत एवं आभार व्यक्त किया. कार्यक्रम की समन्वय डॉ. कृष्णा सिंहा ने किया. कार्यक्रम का प्रशासनिक समन्वय रजिस्ट्रार अजय वर्मा का था. डॉ. भरत भाटी एवं डॉ. मनोज कुमार गुप्ता के साथ ही ब्राउस परिवार का सक्रिय सहयोग रहा.
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