अम्बेडकर विश्वविद्यालय, महू में भक्तिमयी शबरी पर कार्यक्रम का मंचन

 सामाजिक समरसता स्थापित करने में सहायक है शबरी का मंचन- सुश्री उषा ठाकुर, संस्कृति मंत्री

आदिवासी लोक संस्कृति और परम्परा के सम्वाहक हैं राम- कुलपति प्रो. आशा शुक्ला
इस मंचन से वन्यजाति और उनके चरित्र नायको की लोक व्याप्ति होगी
महू।  डा. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू के बुद्ध विहार सभागार में आयोजित भक्तिमयी शबरी का मंचन अविस्मरणीय रहा। आदिवासी संस्कृति एवम परम्पराओ से ओत प्रोत इस मंचन ने सभी लोगो को अविभूत किया। इस कार्यक्रम का शुभारम्भ संस्कृति, पर्यटन एवम अध्यात्म मंत्री म. प्र.शासन सुश्री उषा ठाकुर तथा डा. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू की कुलपति प्रो. आशा  शुक्ला ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया ।
यह कार्यक्रम संस्कृति, पर्यटन एवम अध्यात्म मंत्रालय  म. प्र., राज्य ओपन स्कूल, शिक्षा विभाग, तुलसी मानस प्रतिष्ठान तथा डा. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू के सँयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित किया गया।   सुश्री उषा ठाकुर और प्रो. आशा शुक्ला ने इंदौर, भोपाल, महू के गणमान्य नागरिको तथा विशिष्ट जनो का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और कलाकारो को प्रोत्साहित भी किया। मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने प्रदेशवासियो का आह्वान करते हुये कहा  कि शोषित, वंचित, पीडित, आदिवासी, गिरिवासी, अनुसूचितजाति, अनुसूचित जनजाति को जोडने के लिये उनके ही सखा और मित्र के रुप में स्थापित वनवासी राम का विभिन्न क्षेत्रो में आयोजन कर श्री राम का लोक से तथा लोक परम्पराओ से जोडकर देखने की जरूरत है । वनवासी राम के विभिन्न पक्ष जहाँ पर निषादराज और भक्तिमयी शबरी का राम के साथ अटूट रिश्ता रहा है । इस मंचन के पीछे भारतीय सनातन परम्परा ने ज्ञान एवम भक्ति के माध्यम से जीवन के सत्य को देखने और संरक्षित करने का एक प्रयास किया है ।
डा. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि राम चरित्र मानस श्री राम कथा में वर्णित वनवासी चरित्रों को अभी तक लोक व्याप्ति नहीं हो सकी है। वनवासी चरित्रों निषादराज और भक्तिमयी शबरी पर आधारित जो प्रस्तुति देखने को मिली वह रामकथा आधारित पारंपरिक शैलियों में मंचित किया गया जिसमें शबरी के माध्यम से वनवासियों के प्रति प्रेमपूर्ण रिश्तों को देखा व महसूस किया गया। दरअसल इस लीला में जनजाति और लोक समुदाय के जिन कलाकारों ने प्रतिभाग किया वह अविस्मरणीय है।
प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि वर्तमान वनवासी समुदायों में जो विविधता पैदा की जा रही है वे सभी आशंकाये इस प्रस्तुति के बाद निराधार साबित होगी और सनातन परंपरा के अप्रतिम उदाहरणों एवं लीला के माध्यम से सामाजिक समरसता के सार्थक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे। यह आदिवासी समाज के बीच में सामांजस्य स्थापित करने का तथा लोक में समावेशीकरण करने का अप्रतिम और सार्थक प्रयास साबित होगा। इस मंचन से वन्यजाति और उनके चरित्र नायकों की लोक व्याप्ति भी होगी  और जन जन तक पारस्परिक बंधुत्व की भावना को संवर्धित किया जा सकेगा। संस्कृति विभाग म. प्र. शासन द्वारा इन मंचीय कार्यक्रमो से एवम लीलाओ के माध्यम से सभी जनजातीय समुदाय के लोगों में बंधुत्व, प्रेम, सद्भाव और भाईचारा उत्पन्न हो सकेगा। प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि श्रीराम नित्य वर्तमान हैं, मर्यादित हैं,  राम की जीवन यात्रा, वनयात्रा, धर्मयात्रा है। राम का जीवन राजसत्ता से लोकसत्ता का संघर्ष है और राम का रावण से युद्ध एक अपराजेय सत्ता के खिलाफ एक ऐसे व्यक्ति का युद्ध है जो सत्ताविहीन है । लोक का अत्याचारी सत्ता से संघर्ष है। चिरकालिक सत्ता के महानायक हैं राम। भारतीय संस्कृति के संवाहक हैं राम । चिरंतन भारतीय लोक परम्परा के वाहक हैं राम । अयोध्या हम सब की आस्था का केंद्र है और श्री राम उच्च नैतिक आदर्शो के प्रतिमान हैं । राम का स्वरूप,  प्रकृति और आभा तथा स्मृतियाँ हमारे मन को झंकृत करती हैं और आभासीय सत्य से सामांजस्य स्थापित कराती हैं । ऐसा लगता है कि जैसे श्री राम हम सबके हैं चाहे गिरीवासी हो, वनवासी हो, शोषित हो, वंचित हो, निराश्रित हो ये सभी राम के लगते हैं  इन सबके बीच राम उपस्थित हैं ऐसा अहसास दिलाते हैं । इसीलिये जब भी आर्थिक और तकनीकी विकास चरम पर होगा राम का लोक में होना नैतिक मूल्यो व मर्यादा का स्थापित करेगा।
राम के सहायक किष्किंधा के वनवासी हैं और इन सब आदिवासियो का नेतृत्व करते हैं राम। राम अर्थ सत्ता से टकराते हैं और विज्ञान की सत्ता से भी टकराकर कर्म की चेतना से लोक को जोडते हैं क्योंकि राम के नेतृत्व में गिरीवासी, आदिवासी, उपेक्षित जनमानस राजसत्ता से संघर्ष करते हैं और राम इन सभी के सहयोग से ही अपराजेय होकर लोक में सामने आते हैं । इस अवसर पर बुद्ध विहार सभाग्रह में कुलसचिव डा. अजय वर्मा, प्रो. आर. के. शुक्ला, प्रो. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी, श्रीमति संध्या मालवीय सहायक कुलसचिव, श्रीमती नीलिमा निनामा वित्त नियंत्रक, डा. दीपक कारभारी सहायक कुलसचिव, डा. मनोज गुप्ता, डा. राम शंकर, डा. बिंदिया तातेर, डा. भरत भाटी, कंचन सिंह, कुछ अति विशिष्ट अतिथि, श्री मुकेश कौशल, श्री मुकेश पाटीदार, गजेंद्र पाटीदार, सचिन पाटीदार आदि गणमान्य अतिथि, विश्वविद्यालय परिवार एवम महू के नागरिक उपस्थित हुये I अतिथियो का स्वागत डॉ. सुरेंद्र बिरहे, ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला, जितेन्द्र पाटीदार, डॉ. अजय दुबे ने शाल, श्रीफल एवँ पुष्पगुच्छ द्वारा किया I कार्यक्रम का सँयोजन तथा प्रस्तावना वक्तव्य साहित्य अकादमी, भोपाल से विनोद व्यास द्वारा किया गया।  कार्यक्रम का सँयोजन साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन, के उप निदेशक डा. सुरेंद्र बिरहे द्वारा सफलत्तापूर्वक किया गया I भक्तिमयी शबरी के ऊपर आधरित मंचन में श्री शैलेंद्र मंडोड, श्री रविंद्र मंडोड, सुश्री ख्याति मंडोड, श्री महावीर परमार, श्री रितिक भूरिया, सुश्री ईशा गरवाल, श्री मितेश वाखला , श्री हरिनारायण चढ़ार, सुश्री शांभवी मिश्रा, सुश्री हर्षिता मिश्रा, श्री प्रदीप तिवारी,श्री अमित कुमार शर्मा, श्री प्रभाकर द्विवेदी, सुश्री एकता चौरसिया, श्री वृंदाबन अहिरवार, श्री अरविंद सिंह, सुश्री बुरी खराड़ी, श्री हिंदू सिंह, श्री अंशुल दुबे, श्री प्रवीण नामदेव, सुश्री सोनीका नामदेव, श्री सोनू शाह, श्री निर्मल कुमार दास, श्री हर्षल, श्री विवांश और श्री जतिन कुमार ने बडे ही रोचक तरीके से विभिन्न कलाकारो ने अपनी प्रस्तुतियाँ दी। 



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