आजादी के अमृत महोत्सव के कार्यक्रम के अंतर्गत "स्वातंत्र्यवीर सावरकर : प्रेरक जीवन" विषय पर अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन

 युवाओं के प्रेरणापुंज हैं वीर सावरकर  : प्रो. आशा शुक्ला, कुलपति

 अप्रतिम योद्धा थे वीर सावरकर : विवेक

महू (इंदौर)। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय सर्वधर्म समभाव सहित स्वतंत्रता सेनानानियों के कार्यों, विचारों और उनके अक्षुण्य योगदान को समृद्ध करते हुए निरंतर गतिशील है। विश्वविद्यालय निरंतर वैश्विकपटल पर स्थापित होकर वीर सेनानानियों के कृतित्व एवं वैचारिकी के समावेशी चिंतन को जनमानस तक पहुँचाने के लिए संकल्पित है। स्वातंत्र्यवीर सावरकर आजादी के ऐसे दीवाने रहे जिन्होंने राष्ट्र को समरस बनाने के लिए प्रतिम योगदान दिया। स्वतंत्रता की संघर्ष एवं वीरगाथा को अंडमान निकोबार की सेल्युलर जेल के भ्रमण करने से हो सकती है। युवाओं को वीर सेनानियों की वीरगाथाओं को पढ़कर, सुनकर उनके द्वारा आजादी के चुकाए गए मूल्य को समझना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी सदैव आजादी के दीवानों के प्रति समर्पण का भाव रखे। स्वातंत्र्यवीर सावरकर साक्षात राष्ट्रप्रेम एवं समर्पण के साधक हैं। स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को समाज में संवर्धित एवं संप्रेषित करने के लिए योजनाबद्ध ढंग से प्रयास किया जा रहा है। उक्त बातें ब्राउस कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने बाबू जगजीवन राम पीठ, डॉ. बी. आर.  अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू तथा हेरीटेज सोसाईटी, पटना के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रंखला-22 में आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार विषय ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर : प्रेरक जीवन’ में बतौर अध्यक्ष कही।
 
कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने सदैव राष्ट्र को सर्वोच्च माना है। आजादी के संघर्ष के दौरान उन्होंने खुद से ज्यादा राष्ट्रहित को प्रमुखता दी। उन्होंने मानवकल्याण एवं राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी. आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत सेनानियों को स्मरण करने की श्रंखला में वीर सावरकर को स्मरण किये बगैर स्वतंत्रता आंदोलन बखूबी समझा नहीं जा सकता। विश्वविद्यालय में स्थापित विभिन्न पीठों के द्वारा राष्ट्रहित की गतिविधियाँ संचालित की जाती हैं ताकि जनमानस उनको आत्मसात कर सके। राष्ट्र कल्याण का समरस भाव लोगों में उद्धृत हो सके इसी पर सावरकर जी निरंतर प्रयत्नशील रहे। सावरकर ने अपने कृतित्वकाल में संघर्ष करते हुए नए प्रतिमान स्थापित किये। युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।  

मुख्य वक्ता के रूप में तरुण भारत समाचार के पूर्व प्रधान संपादक एवं विद्वान वक्ता विवेक घल्ससी ने कहा कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने एक सफल समाज सुधारक, राष्ट्र चिन्तक एवं स्वतंत्रता सेनानी के रूप में योगदान दिया। सावरकर का आज़ादी के लिए समावेशी चिंतन सदैव राष्ट्र एवं समाज को जोड़ने वाला रहा है। राष्ट्र के प्रति प्रेम सदैव उनकी कार्यशैली में दिखाई देता रहा है। सावरकर सर्वधर्म हिताय के समर्थक रहे। उनके व्यक्तित्व में आत्मसंयम, संगठन, राष्ट्र और स्वावलंबन जैसे गुणों का समावेश रहा। सावरकर के चिंतन में समरसता एवं समता का समावेश था। उनके चिंतन के केंद्र में व्यक्ति से ज्यादा राष्ट्र रहा। बाल्यकाल से ही वे आजादी के जनजागरण के संभाषणों में भाग लेते थे, उन पर मंथन करना आजादी के प्रति निष्ठा के भाव को बल मिलता है। 83 वर्ष की अवस्था तक उन्होंने केवल राष्ट्र चिंतन किया। आज के युवा जहाँ गलत संगत में पड़कर ड्रग्स जैसी लत का शिकार हो रहे हैं वहीं सावरकर बाल्यकाल से ही आजादी के लिए संघर्षरत हो गए। वीर सावरकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ ही एक सफल इतिहासकार, राष्ट्र कवि एवं राष्ट्रवादी लेखक भी रहे। सदैव युवाओं के प्रेरणा पुंज रहे अदम्य साहस के धनी सावरकर ने कभी राष्ट्र की प्रतिष्ठा से समझौता नहीं किया, इसीलिए उन्होंने सहर्ष सेल्युलर जेल की यातना को स्वीकार किया। घल्ससी ने सावरकर के बहुआयामी पक्षों पर विस्तारपूर्वक चार्चा करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण में सावरकर का योगदान सदैव याद किया जायेगा।
बाबू जगजीवन राम पीठ के प्रोफ़ेसर डॉ. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने सावरकर के व्यतित्व, कृतित्व एवं जीवन पर उल्लेखित करते हुए कहा कि वीर सावरकर का सामाजिक, राजनैतिक चिंतन युवाओं के लिए अनुकरणीय है। वीर सावरकर का संपूर्ण जीवन प्रेरणास्पद रहा है। युवाओं को वीर सेनानियों की संघर्ष गाथा को निरंतर पढ़ते और सुनते रहना चाहिए ताकि आजादी का संघर्ष हमेशा स्मृति में रहे।
कार्यक्रम में अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया ।
कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन हेरीटेज सोसाईटी, पटना के महानिदेशक डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर देश-विदेश के वरिष्ठ स्वतंत्रता चिन्तक, शिक्षक एवं शोधार्थी आभासी मंच से जुड़े रहे।



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