महू। एकात्म मानवदर्शन तथा स्वावलंबन पं. दीन दयाल उपाध्याय के कार्यों का प्रेरणा स्रोत था जिसे नानाजी देशमुख ने आगे बढ़ाया। स्वावलंबन भारतीयता के दर्शन को समावेशित करता है। दीन दयाल शोध संस्थान उनके कार्यों को विकसित करने में निरंतर प्रयत्नशील है। दीन दयाल शोध संस्थान के दो सूत्र हैं, पहला समग्रता जिसमें किसी भी कार्य के समस्त पक्षों को बढ़ाना तथा दूसरा कार्यों में देशानुकूल एवं युगानुकूल चिंतन का होना है। उक्त बातें डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू में नानाजी देशमुख पीठ के उद्घाटन तथा ‘नानाजी देशमुख का सामाजिक एवं सांस्कृतिक चिंतन’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार में मुख्य अतिथि के रूप में दीन दयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली के प्रबंध निदेशक अतुल जैन के कही।
अतुल जैन ने कहा कि सतत विकास के सभी लक्ष्य भारतीय चिंतन के एकात्म मानव दर्शन से पूरी तरह मिलते हैं। विकास के सन्दर्भ में नानाजी ने गाँव को गोद न लेने बल्कि उनके साथ मिलकर काम करने पर जोर दिया। भारत के प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत, वोकल फॉर लोकल और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने संबंधी प्रयास पं. दीन दयाल उपाध्याय और नानाजी देशमुख के कार्यों का विस्तार है। उन्होंने भारतीय मंदिरों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व को पीठ के जरिये शोध परक ढंग से दुनिया के सामने लाने का प्रस्ताव रखा।
अखिल भारतीय संत समिति, म.प्र. के उपाध्यक्ष महामंडलेश्वर डॉ. नरसिंह दास ने कहा कि बाबा साहब और नानाजी दोनों महापुरुष त्याग, वैराग्य और समर्पण के प्रेरणापुंज रहे हैं। भारतीय संस्कृति के मूलाधार शिक्षा के केंद्र रहें हैं। शिक्षा के इन केन्द्रों से ही भारतीय सांस्कृतिक एकता एवं संप्रुभता को विकसित कर सकते हैं। विद्युत के अविष्कार से लेकर एविएशन इंडस्ट्री तक का जिक्र भारतीय शास्त्रों में मिलता है। नानाजी के कार्यों को विश्वविद्यालयों में हो रहे शोध एवं अकादमिक गतिविधियों से आगे बढ़ाने की जरुरत है। स्वावलंबन तथा प्रकृति से जुड़ने का संकल्प आज के युवाओं को करने की आवश्यकता है। युवाओं को भारतीयता की जड़ों एवं प्रकृति से जोड़ने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। इसी के निमित्त मेरी 200 एकड़ की जमीन युवाओं द्वारा पेड़-पौधों को लगाने के लिए खुली है। विश्वविद्यालय परिवार के विद्यार्थी इस भूमि को प्राकृतिक प्रयोगशाला के लिए विकसित कर सकते हैं।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डी.के.शर्मा ने कहा कि नानाजी देशमुख पीठ की स्थापना का उद्देश्य नानाजी देशमुख और पं. दीन दयाल उपाध्याय के व्यक्तित्व-कृतित्व एवं दर्शन को अध्ययन-अध्यापन के जरिये समाज में पहुँचाना है। सामाजिक विश्वविद्यालय निरंतर महापुरुषों की चिंतन-मंथन के कार्यक्रम आयोजित कर नवाचारी पहल को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील है।
पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद महापुरुषों पर विमर्श की नई दृष्टियों का विकास हुआ। नानाजी देशमुख ने गरीबी उन्मूलन और न्यूनतम आवश्यकताओं पर आधारित विचार पर जोर दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की जड़ों को सिंचित करने का प्रयास किया है। डॉ. अम्बेडकर ने समानता, न्याय और बंधुत्व का दर्शन दिया तथा नाना जी देशमुख ने पं. दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन को बढ़ावा दिया। यह विश्वविद्यालय नानाजी देशमुख व बाबा साहब के विचार एवं दर्शन को समरस बनाकर वैश्विक फलक पर प्रतिस्थापित करेगा और दोनों पर शोध कार्य जाएगा जो समाज को दिशा देने का कार्य किया जा सके।
महू के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता राधेश्याम यादव ने कहा कि नानाजी देशमुख दुनिया के सबसे बड़े कुल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की परंपरा के अग्रणी वाहक थे। उनका सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन पूरी तरह राष्ट्र समर्पित रहा है। हमारे युग के नव दधीचि नानाजी देशमुख के नाम पर विश्वविद्यालय में स्थापित यह पीठ गौरव का विषय है। इस पीठ के माध्यम से पं. दीन दयाल उपाध्याय के सपनों के भारत और नानाजी देशमुख के कृतित्व को पल्लवित करने में मदद मिलेगी।
कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन करते हुए आचार्य डॉ. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने कहा कि विश्वविद्यालय निरंतर अकादमिक ज्ञान विस्तार के नए क्षेत्रों का सृजन कर रहा है। नानाजी देश मुख पीठ का उद्घाटन तथा नानाजी देशमुख के सामाजिक और सांस्कृतिक चिंतन पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन एक स्वर्णिम पल है। कार्यक्रम की शुरुआत तनु मीणा के सरस्वती वंदना तथा समापन सामूहिक राष्ट्रगान से हुआ।
धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव डॉ. अजय वर्मा द्वारा किया गया । इस अवसर पर पीठ प्रभारी डॉ. अशोक कुमार, वरिष्ठ पत्रकार एवं महू के गणमान्य नागरिक, विद्वान तथा विद्यार्थी मौजूद रहे।
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