आ जाओ गौरैया रानी
पढ़ते-पढ़ते रोज़-रोज़ अखबार,
करती थी बिटिया प्रश्न ये बार-बार ।
कौन है आखिर यह गौरैया,
जिसके लिए चिंतित सब दीदी-भैया ।
उसकी भोली आँखों में थी जिज्ञासा,
नन्हें मन मे थी, मुझसे उत्तर पाने की आशा ।
मैंने प्यार से करीब उसे बैठाया,
धीरे से उसके बालों को सहलाया,
रुंधे कंठ से बोली, सुन मेरी गुड़िया रानी,
तुझ जैसी प्यारी है, यह गौरैया रानी,
कभी अंगना में थी फुदकती,
पानी पीती, बबखरे दाने थी चुगती,
तिनका- तिनका बीन, बनाती थी अपना नीड़,
फुर्र से उड़ जाती, देख हमारी भीड़ ।
तारों पर बैठ, लेती थी वह झूले,
चहचहाकार कानों में मिश्री घोले,
बदल गया पर आज सब पररवेश,
आँगन ने लिया इमारतों का भेष,
नहीं बचे छज्जे और गलियारे,
जहाँ बसाये वह संसार प्यारा ।
लगता सबको, वह हम सबसे है ऐठी,
ऐठी नही, वह तो हम सबसे है रूठी ।
छीना है हमने, उससे उसका आशियाना,
निकल पड़ी वह ढूंढने नया आशियाना,
भरे मन से भेज रहे, सब उसे यह सदेशा,
आ जाओ, अब न करेंगे दूजभाव ऐसा ।
गलती है सबने अब अपनी मानी,
कर दो माफ समझ हम सबकी नादानी,
अब तो आ जाओ, ओ गौरया रानी,
अब तो आ जाओ, ओ गौरैया रानी......
......प्रीति वाणी, इंदौर
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