एक नागरिक को हर धर्म का करना चाहिए सम्मान तभी राष्ट्र मजबूत होता है~ पायल प्रमाणिक, इन्दौर

 


राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि होता है अर्थात राष्ट्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो किसी भी देश के नागरिकों की साझा पहचान को बढ़ावा देती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति एवं संपन्नता के लिए नागरिकों में सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना को मजबूती प्रदान करना आवश्यक है और इसमें राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

राष्ट्रवाद यानि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का विकास किसी भी देश के नागरिकों की एकजुटता के लिए आवश्यक है। यही वजह है कि बचपन से ही स्कूलों में राष्ट्रगान का नियमित अभ्यास कराया जाता है और आजकल तो सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाता है, और साथ ही पाठ्यक्रमों में देश के महान सपूतों, वीरों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का समावेश किया जाता है।आजकल राष्ष्ट्र और धर्म को एक तराजू में तोला जा रहा है जबकि दोनो ही चीजे अलग अलग है।

देश के प्रति समर्पण की भावना हर नागरिक में होनी चाहिए मगर जरूरी नहीं है कि उसको धार्मिक होना चाहिए।मगर एक नागरिक को हर धर्म का सम्मान करना आना चाहिए। ये ही एक अच्छे नागरिक की पहचान है।


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