प्राण के बाण
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धीरज का मीठा फल होता चखना बहुत जरूरी है।
संकट में सन्तुलन बुद्धि का रखना बहुत जरूरी है।।
फूलों से फाँसें लगती थीं और दिए की लौ से लू।
एक समय ऐसा भी था जब, भारी लगता था पल्लू।।
पाँच पसेरी अन्न न खुद पर जग न्योता कर देता है।
मुट्ठी भर सत्तू के बल पर भण्डारा कर लेता है।।
कभी कभी दुनिया में ऐसा भी होता सुन रामकली।
पतिव्रता भूखी मर जाती लड्डू खाती कामकली।।
जब अहम् ढहने लगा तो फिर वहम रहने लगा।
युद्ध दुनिया की विनाशक दास्ताँ कहने लगा।।
दहशतों का दौर है क्या विश्व ठोकर ही सहेगा।
लग रहा है तीसरा अब युद्ध होकर ही रहेगा।।
कुछ अपने सपने खुद टूटे,कुछ कुछ सपनों ने लूट लिया।
कुछ ने छला बना कर अपना, कुछ अपनों ने लूट लिया।।
~~~~गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण"
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