डॉ राजेश जौहरी, मांडू।
ऐसे ही नहीं चुना गया है ट्राइबल टूरिज्म के लिए पर्यटन विभाग द्वारा मांडू के नीचे बेस मालीपुरा गांव को। यहां है प्राकृतिक सौंदर्य, रोमांच से भरी गांव तक की यात्रा, यहां के बांध में मौजूद अपार जल राशि, हिमालय के इलाकों की तरह अलग-अलग टीलों पर बसे आदिवासी समाज के खूबसूरत ट्रेडिशनल घर और भी बहुत कुछ जो आप पाएंगे इस रिपोर्ट में।
पिछले काफी समय से मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग की प्रेस विज्ञप्तियों और धार जिले के समाचारों में मांडू डेट लाइन से विभाग की होमस्टे योजना के बारे में खबरें प्रकाशित होती रही हैं। इन खबरों में इस इलाके का सुंदर वर्णन भी मिलता है जिस पर लोगों को एकदम से विश्वास नहीं होता है। इसी की सच्चाई जानने के लिए हमारी टीम गुरुवार 19 अक्टूबर को मालीपुरा पहुंची।
नालछा से मांडू जाते समय जो तीसरा दरवाजा पड़ता है, उसका नाम है कमानी गेट और इसी कमानी गेट के ठीक पहले से उल्टे हाथ पर एक कच्चा रास्ता दिखाता है जो मालीपुरा और उससे आगे के कुछ गांव रति तलाई, बांधव, आंबापुरा और भटकल को छूते हुए गुजरी से आने वाले रास्ते पर मिलता है।
शुरुआत का रास्ता तो आसान सा लगता है पर सिर्फ डेढ़ सौ मीटर जाने के बाद खड़ा उतार है और वह भी पत्थरों और गड्ढों से भरे रास्ते का जिसका निर्माण यूं तो काफी पहले स्वीकृत हो चुका है पर वन विभाग की आपत्ति के चलते मार्ग निर्माण का कार्य अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। वन विभाग और अन्य सरकारी विभागों की खींचतान के बीच जिनको सबसे अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, वह है इन चार गांव के रहवासी जिनके लिए रोजमर्रा की जरूरत को पूरा करने या अन्य किसी कार्य से मांडू आना किसी खतरनाक पर्वतारोहण अभियान से किसी भी स्थिति में काम नहीं है। चित्रों में इस बात को देखा और समझा जा सकता है हालांकि।
इस बारे में हम लोगों को महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर श्रीमती दुर्गा चौहान ने कमानी गेट पर ही आगाह कर दिया था कि रास्ता बेहद खतरनाक है पर हम लोगों ने भी निश्चय जो कर रखा था उसे गांव तक पहुंचने का, इसलिए हमने अपना सफर पूरा कर लिया।
खैर! तमाम बढ़ाओ को पार करते हुए जब हम लोग मालीपुरा पहुंचे तो बिल्कुल मंत्रमुग्ध से हो गए। मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर बसे छोटे-छोटे गांव की यादें ताजा हो गई यहां पहुंचकर।
चारों ओर से ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरी एक छोटी सी घाटी में बसा है मालीपुरा जो मांडू से लगभग 1000 फीट नीचे है। यहां बना मालीपुर बांध जो लगभग 2 किलोमीटर लंबा और लगभग 400 मीटर चौड़ा है, इस इलाके की खूबसूरती को भी और बढ़ा देता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने इसी गांव में पर्यटकों के लिए होमस्टे योजना के तहत एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। शुरुआत में पांच आदिवासी परिवारों को चयनित करके आर्थिक सहायता और विशेष ट्रेनिंग दी गई है। वे सारे होमस्टे लगभग तैयार हैं और आने वाले एक या डेढ़ माह में उम्मीद है कि देसी विदेशी पर्यटक उन विशेष घरों में रुकने लगेंगे।
जाहिर है! अगर ऐसा होता है तो इन आदिवासी परिवारों की आय में वृद्धि होने से उनका जीवन स्तर अच्छा हो जाएगा और वह शहर की ओर पलायन के बारे में कभी नहीं सोचेंगे। यह योजना इसलिए भी बहुत अच्छी है क्योंकि अपने देश के शहरी लोगों और विदेशी मेहमानों को मालवा की आदिवासी संस्कृति भी करीब से देखने को मिलेगा।
उन पांच होम स्टेस में से एक को अपने घर में बनाने वाले दिनेश कटारे ने हमें बताया कि किस तरह से इन होमस्टे से और पर्यटकों के लगातार गांव में आने से उन लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है। श्री कटारे ने पर्यटन विभाग द्वारा उन्हें आर्थिक सहायता देने के साथ-साथ इन होमस्टे को कैसे संचालित करना है, इस बारे में गुजरात की एक संस्था से ट्रेनिंग भी दिलवाई है। इस ट्रेनिंग में उन्हें वह सब बातें भी बताई हैं जो होटल मैनेजमेंट के विद्यार्थियों को सिखाई जाती हैं जिससे उनके यहां आने वाले देश और विदेश के मेहमान अच्छा महसूस करें और यहां से अच्छे अनुभव लेकर जाएं।
मांडू क्षेत्र की खबरों को देश और दुनिया के सामने लाने वाले उत्कृष्ट पत्रकार कपिल पारीख से भी हमने बात की और उन्होंने इस होमस्टे योजना और पर्यटन विभाग द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्यों के बारे में भी काफी विस्तार से बताया। श्री पारीख पत्रकार होने के कारण लगातार इन सब मामलों से जुड़े रहते हैं और उनको आदिवासी समाज के लोगों के उत्थान के लिए काम करना भी अच्छा लगता है। उन्होंने बताया कि पर्यटन विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी श्री शिवशेखर शुक्ला ने इस योजना और मांडू को पर्यटन के नक्शे पर अच्छी स्थिति में ले जाने के लिए बहुत कुछ किया है और श्री शुक्ला हमेशा स्थानीय लोगों से कुछ ना कुछ सुझाव लेते रहते हैं कि कैसे मांडू के पर्यटन को ऊंचाइयों पर ले जाया जा सके।
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