- सही दिशा में बड़े लक्ष्य की ओर तेजी से ठोस कदम बढ़ा रहे हैं
- संसद में कल के भाषण से स्टेट्समैन नरेंद्र मोदी का अवतार दिखा
- प्रियंका गांधी ठीक-ठाक रहीं लेकिन राहुल गांधी का भाषण कॉलेज डिबेट से ऊपर नहीं जा सका
- भाजपा पर मनुवादी होने का ठप्पा 90 के दशक में ही पूरी तरह से घुल चुका है, अब भाजपा को बनिए ब्राह्मणों की पार्टी कहना खुद को गफलत में रखने जैसा है
303 के बहुमत वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना में 240 सांसदों वाले मोदी ज्यादा प्रभावी और मजबूत नजर आ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम का यह बयान कल खुद प्रधानमंत्री ने संसद में सही साबित किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सही दिशा में बड़े लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। उन्होंने लोकसभा चुनाव के परिणामों में कोर्स करेक्शन करते हुए फिर से वही स्थिति हासिल कर ली है जो 2019 के बाद उनकी थी। लोकसभा चुनाव के बाद देश के मूड में आए बदलाव को राहुल गांधी और उनकी सलाहकार मंडली भांप नहीं पा रही है। यही वजह है कि राहुल गांधी भाजपा पर पुराना घिसा पिटा मनुवादी होने का आरोप लगा रहे हैं। यह और आरोप भी 80 दशक के उत्तरार्ध में और 90 के दशक में पूरी तरह से खारिज हो चुका है। यह वह भाजपा है जिसके दो राज्यों में आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, तो तीन राज्यों में ओबीसी मुख्यमंत्री। नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में 27 ओबीसी मंत्री हैं। खुद प्रधानमंत्री ओबीसी वर्ग से आते हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदिवासी हैं तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ओबीसी। इसके अलावा अनेक राज्यों के राज्यपाल ओबीसी,दलित और आदिवासी वर्ग के हैं। कांग्रेस और राहुल गांधी यदि भाजपा को 80 के दशक वाली भाजपा मानकर राजनीति करेंगे तो कांग्रेस कभी भी भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकेगी। भाजपा ने पिछले ढाई दशकों के दौरान लगातार सोशल इंजीनियरिंग की है। आज देश भर के ओबीसी वर्ग की सबसे पसंदीदा पार्टी भाजपा है। इसलिए राहुल को मनुस्मृति हाथ में लेकर भाजपा पर हमला करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए। राहुल भाजपा की ताकत को समझने में गलती कर रहे हैं। यही गलती राहुल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर भी कर रहे हैं। जाहिर है संसद के संविधान सत्र में राहुल गांधी कुछ भी नया नहीं कर पाए। प्रियंका गांधी जरूर अपनी भाषण शैली के कारण चर्चित रही, लेकिन उनके भी भाषण लेखक वामपंथी होने से प्रियंका का पूरा फोकस मुस्लिम मतदाताओं पर रहा। इसके विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल स्टेटमेंट्समैनशिप की स्पष्ट झलक देश को दिखाई। उनके भाषण में देश और संविधान के प्रति गौरव भाव था, उन्होंने विभिन्न तर्कों के माध्यम से देश को यह समझने में सफलता प्राप्त की कि हमारे संविधान निर्माता भारत को इंडिया इस मेकिंग स्टेट नहीं मानते थे बल्कि हमारे संविधान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का स्पष्ट भाव प्रकट होता है। राहुल गांधी और प्रियंका के भाषण लेखन यही बेसिक गलती कर रहे हैं। भारत एक प्राचीन राष्ट्र है जिसकी हजारों वर्षों की लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष परंपराएं हैं। जबकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के वामपंथी लेखक भारत को 1947 में पैदा हुआ देश मानते हैं। जब तक आप भारत को प्राचीन राष्ट्र नहीं मानेंगे तब तक आप इसकी परंपराओं और तासीर से जुड़ नहीं सकते। भारत को देखने का विदेशी दृष्टिकोण राहुल को बदलना होगा। कम से कम एक बार वो संविधान की मूल प्रस्तावना और जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया जरूर पढ़ें। भारत पर यूरोपीय राष्ट्र और राज्य की अवधारणा लागू नहीं होती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2001 से 2014 तक लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री और उसके बाद से प्रधानमंत्री हैं। पिछले 23 वर्षों से संवैधानिक पदों पर रहने के बावजूद नरेंद्र मोदी पर एक भी संविधान विरोधी कृत्य का आरोप नहीं लगा है। जाहिर है नरेंद्र मोदी और भाजपा को संविधान विरोधी नहीं बताया जा सकता। कांग्रेस को यह बात हरियाणा, जम्मू और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम से समझ लेनी चाहिए। राहुल गांधी कुछ नहीं तो कम से कम एके एंटनी की रिपोर्ट ही पढ़ लें कि कांग्रेस हिंदी बेल्ट और पश्चिमी भारत में भाजपा का मुकाबला क्यों नहीं कर पा रही ? हालांकि अब तो पूर्वी भारत से भी कांग्रेस का सफाया हो गया है। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में कांग्रेस तीसरे या चौथे नंबर की पार्टी है। जबकि असम में लगातार तीन लोकसभा चुनाव और दो विधानसभा चुनाव से कांग्रेस भाजपा से पीछे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कल के भाषण से साफ दिख कि आने वाले दोनों में केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन, कॉमन सिविल कोड और वक्फ बिल को कानून बनाने की दिशा में काम करेगी। प्रधानमंत्री महिला आरक्षण को कानून पहले ही बना चुके हैं। 2025 में जनगणना पूर्ण होते ही लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र के परिसीमन का काम चालू होगा। अन्य डीलिमिटेशन के बाद लोकसभा सदस्यों की संख्या बढ़ जाएगी। जहिर कांग्रेस के सामने अनेक तरह की चुनौतियां हैं लेकिन राहुल कॉलेज के छात्र नेता की तरह हाथ में संविधान और मनुस्मृति लेकर भाजपा से मुकाबला करने की कोशिश कर रहे हैं।
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